अब याद आ रहा है वो माह का अक्टूबर जब मैंने तुझे तो नहीं पर तेरे पैरो लो देखा और देखते ही तुझ से प्रेम हो गया। दुनिया सूरत देखती है और मेरी नजर तेरी पैरो पर पड़ी और उसी समय एक आवाज आई बस तलाश खत्म मिल गई मंजिल, पैर की क्या बात करुं ऐसे थे मानो जैसे गुलाब की गुलाबी पंखुड़ी हो सुंदरता तो ऐसी थी कि दिल भरता ही नहीं उन्हें बिना देखे पर सबसे नज़र बचा कर आंखें उन्हीं देखा करती थी जब तुम उस पैरों को सजाती संवारती थी तो मेरे दिल में उन्हें देखकर गुदगुदी सी होने लगती थी मैंने तुम्हें तो ना बोल पाया पर तुम्हारे पैरों को कह दिया की "सुनो ना,तो तुम्हारे पैरों ने कहा कहो," मैंने तुम्हें तो नहीं पर तुम्हारे सुंदर पैरों से ही तुमसे पहले अपने प्यार का इजहार कर दिया और मानो मैंने उन्हें ही कह डाला कि हमें तुम्हें इंतहा प्यार है" और यह सुनते मानो तुम्हारे पैरों ने मुझसे शर्मीली नजर से मुझसे कहा जी हमें भी आपसे मोहब्बत है कितना हसीं पल था वह जब दोनों के दिल मिल गए मानो दोनों के दिल ही दिल में फूल खिल गए।
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